kanchan singla

Add To collaction

कान्हा की मुरली

कान्हा कि मुरली 

मुरली की तानें

जब बजती है

मन नृत्य करता है 

खो जाता है।।

ऐसे ही खोना चाहती हूं कान्हा में।।


रंग उड़ता है

चेहरे पर पड़ता है

पिचकारी का वो पानी

कान्हा की कहानी।।

ऐसे ही रंगो में खिलना चाहती हूं मैं।।


माखन चुराना

मटकी का फूट जाना

पकड़े जाना

मैया से शिकायत होने पर

भोलेपन से बच जाना।।

ऐसा ही माखन खाना चाहती हूं मैं।।



- कंचन सिंगला 

लेखनी प्रतियोगिता -01-Dec-2022

   18
3 Comments

Gunjan Kamal

05-Dec-2022 07:29 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

Reply

Rajeev kumar jha

02-Dec-2022 07:50 AM

बहुत खूब

Reply

Abhinav ji

02-Dec-2022 07:35 AM

Very nice👍

Reply